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यद॒द्य सूर॒ऽउदि॒तेऽना॑गा मि॒त्रोऽअ॑र्य्य॒मा। सु॒वाति॑ सवि॒ता भगः॑ ॥२० ॥

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पद पाठ

यत्। अ॒द्य। सूरे॑। उदि॑त॒ऽइत्युत्ऽइ॑ते। अना॑गाः। मि॒त्रः। अ॒र्य्य॒मा ॥ सु॒वाति॑। स॒वि॒ता। भगः॑ ॥२० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:20


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजा कैसा हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यत्) जो (अद्य) आज (सूरे) सूर्य के (उदिते) उदय होते अर्थात् प्रातःकाल (अनागाः) अधर्म के आचरण से रहित (मित्रः) सुहृद् (सविता) राज्य के नियमों से प्रेरणा करनेहारा (भगः) ऐश्वर्यवान् (अर्य्यमा) न्यायकारी राजा स्वस्थता को (सुवाति) उत्पन्न करे, वह राज्य करने के योग्य होवे ॥२० ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे सूर्य के उदय होते अन्धकार निवृत्त होके प्रकाश के होने में सब लोग आनन्दित होते हैं, वैसे ही धर्मात्मा राजा के होते प्रजाओं में सब प्रकार से स्वस्थता होती है ॥२० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजा कीदृशो भवेदित्याह ॥

अन्वय:

(यत्) यः (अद्य) (सूरे) सूर्य्ये (उदिते) (अनागाः) अधर्माचरणरहितः (मित्रः) सर्वेषां सुहृत् (अर्य्यमा) न्यायकारी (सुवाति) उत्पादयेत् (सविता) राजनियमैः प्रेरकः (भगः) ऐश्वर्य्यवान् ॥२० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यद्योऽद्य उदिते सूरऽनागा मित्रः सविता भगोऽर्यमा स्वास्थ्यं सुवाति, स राज्यं कर्त्तुमर्हेत् ॥२० ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! यथोदितेऽर्के तमो निवृत्य प्रकाशे सति सर्व आनन्दिता भवन्ति, तथैव धार्मिके राजनि सति प्रजासु सर्वथा स्वास्थ्यं भवति ॥२० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! सूर्य उगवल्यानंतर अंधःकार नाहीसा होतो व प्रकाशामुळे सर्व लोक आनंदित होतात, तसेच राजा धर्मात्मा असेल तर प्रजा सर्व प्रकारे सुखी होते.